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ਕਵਿਤਾਵਾਂ
क्या खोया इसकी खबर नहीं है
क्या खोया इसकी खबर नहीं है
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क्या खोया इसकी खबर नहीं है

हर शख्श परेशां सा लगता है,
हर तरफ खामोशी का मँज़र है ।

जिँदगी धुआं धुँआँ लगती है,
चेहरो पर मायूसी का मँजर है।

साँसे थकीं रुकी रूकी सी हैं,
वक्त भी कुछ थमा थमां सा है ।

धड़कनो पर भी यकीं नहीं है,
कब रुक जांयें, भरोसा नहीं है ।

सब कुछ खोया सा डूँडते है,
क्या खोया इसकी खबर नहीं है ।

हर तरफ मँजर भी डरावना है,
धरों बाजारो में खामोशी सी है ।

सब के चेहरे भी सहमें हुये है ,
किस बात का डर है पता नही है।

इन्दर कुछ तो बात जरूर है,
जिसकी तुम को भी खबर नही है।


इन्दरजीत सिंध, कानपुर

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