सिक्ख पँथ में "शब्द गुरू" का सिद्धाँत
कयीं बार लोगों को यह कहते सुना जाता हैं कि ," सिक्ख पँथ गुरू नानक की विचारधारा है" यह वाक्य गुरू ग्रँथ साहिब के सिद्धाँत की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है । गुरू नानक साहिब की निजी विचारधारा का आधार तो अपने खसम (मालिक )की वह वाणी थी, जो उन्हे सारे सँसार के इकलोते मालिक से प्राप्त हुई थी । उन्होंने तो उसी इलाही वाणी को ही अपने सिक्खों तक पँहुचाया , जो उनको एक निरँकार परमेश्वर से प्राप्त हुई थी । उन्हो ने तो स्वयं इस बात की धोषणा भी की
जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो ।। अँक ७२२
भाई गुरदास जी ने भी अपनी वार में इस बात की पुष्टि करते हुये कहा है कि
मारिआ सिका जगति् विचि नानक निरमल पँथ चलाइआ । वार १ पौड़ी ४५ ,भाई गुरदास जी।
गुरू नानक साहिब ने जिस निरमल पँथ की स्थापना की वह कोई "विचारधारा" नही बल्कि उस निरँकार प्रभु का हुकम था ,जो गुरू नानक साहिब को उस करतार के प्रसादि के रूप में प्राप्त हुआ । इसी लिये गुरू ग्ँथ साहिब की शुरूआत ही गुरू नानक ने इन शब्दों के साथ की
ੴ सतिगुर प्रसादि ।।
अर्थात सारी दुनियाँ का केवल १ ही मालिक है, जो सच्चे गुरू की कृपा द्वारा ही प्राप्त होता है ।
गुरू गृँथ साहिब में दर्ज सिक्ख गुरूओ की वाणी को "विचारधारा" जैसे साधारण शब्द से सँबोधित करना उचित नही । गुरू वाणी तो सर्व व्यापक सत्य ( Universal Truth ) है , विचारधारा नही । विचारधारा तो समय समय पर बदल सकती है लेकिन Universal Truth कभी भी बदलता नही। जैसे सारी दुनियाँ का एक मालिक है, जो कभी बदलता नही , वह आदि से है, युगों के आरम्भ से है, हमेशां से है और सर्व व्यापक है । सर्वव्यापक सत्य किसी स्थान, काल , विचारधारा और व्यक्ति या जीव की सोच के अधीन नही होता ।
गुरू ग्रँथ साहिब की वाणी भी सर्व व्यापक, सर्व मान्य सत्य है । वह युग युगाँतर तक सत्य ही रहेगी । कयीं लोगों हम अकसर यह कहते सुनते है कि गुरू गोबिन्द सिँध साहिब ने गुरू गृँथ साहिब को "शब्द गुरू" की पदवी दे कर सिक्ख पँथ में देहधारी व्यक्ति को गुरू मानने की प्रथा को समाप्त कर दिया । गुरू गोबिँद सिँध साहिब ने तो दसवें नानक के रूप में सिक्खों को वही हुक्म किये ,जो गुरू नानक साहिब ने शुरू किये थे ।
सिक्ख पँथ का आधार ही "एक निरँकार करतार" की उपासना और सतगुरू के उपदेशों (शब्द ) को कमाना भाव मानना है । गुरू नानक के निरमल पँथ को गुरू गोबिन्द सिँध साहिब ने एक अलग न्यारा और कुदरती स्वरूप दे कर ,उसे सारी दुनियाँ से अलग और न्यारी पहिचान दी। खालसा लाखों मे खड़ा हुआ अलग ही पहिचाना जा सके । उसको अपना परिचय देने की जरूरत ही नां पड़े कि वह कौन है ? खालसा का ककारों (धार्मिक अलँकारों / चिन्हों ) से सुसज्जित रूप ही उसका परिचय बन गया । सिक्ख का स्वरूप देख कर रोई भी यह कह सकता है कि साबत सूरत रूप वाला यह व्यक्ति गुरू ग्रँथ साहिब के शब्दों को मानने वाला तथा केवल १ निरँकार ईश्वर का उपासक है । वह शब्द का पुजारी है । वह किसी देहधारी, देवी देवते, अवतार जा मूर्ती आदि को नही पूजता। वह केवल अपने सतगुरू के शब्दो पर अमल करता , और उनके आगे ही अपना शीष झुकाता है ।
गुरू नानक साहिब ने प्रभु की भेजी वाणी को लिखने की शुरूवात ही "१" शब्द से की । इस "१" शब्द के लिखते ही गुरू नानक ने इस बात का सँकेत दे दिया था कि सिक्ख पँथ वह नयारा और निरमल पँथ होगा यहाँ करोड़ोंदेवी देवताओ और अवतारो की अराधनां का कोई स्थान नही होगा । यह बात और है कि आज हम गुरूबाणी के इस सिधाँत को पूरी तरह से भूल चुके हैं , आज भी हमारी दुकानों और घरों पर इनके बुत और मूर्तियाँ बहुतात में देखने को मिलती हैं ।
गुरू नानक ने हमें शबद का पुजारी बनाया था, लेकिन हम अपने ही गुरू से बेमुख हो कर बुत प्रस्त बन गये ! गुरू वाणी तो हुकम करती है कि अगर इस भवजल रूपी सँसार मे तुम्हे कोई पार लगा सकता है तो वह केवल सच्चे गुरू का शब्द (वाणी) ही है ।
गुरू नानक से सिद्ध सवाल करते हैं । तुम किस मूल (origin) के हो और उस मूल का समय काल क्या है ? तुम कोन सी कथा (पुस्तक ) द्वारा अपने पँथ को निराला (अलग पँथ ) कहते हो ? तुम्हारा गुरू कौन है ,जिसके तुम चेले हो ? है नानक ! हमें बताओ ?
कवण मूलु कवण मति वेला ।। तेरा कवणु गुरू जिस का तू चेला ।।
कवन कथा ले रहहु निराले ।। बोलै नानकु सुणहु तुम बाले ।। अँक ९४२
गुरू नानक उत्तर देते हैं । इस सारी कथा (पुस्तक) का सार यह है कि इस सँसार रूपी , भवजल सागर से केवल गुरू का शब्द (गुरू की वाणी ) ही पार लगा सकता है । सतिगुरू की मति की ब्यार बह रही है ,उस मति अनुसार उसको ग्रहण करने का वक्त है । सिक्खो के लिये उसके सतगुरू का शब्द ( गुरू बाणी) ही उसका गुरू है ।
ऐसु कथा का देइ बीचारु ।।भवजलु सबद लँघावणहारु ।।अँक ९४३
पवन अरँभु सतिगुर मति वेला।।
शबदु गुरू सुरति धुनि चेला।।अँक ९४३
गुरू वाणी का यह पावन शब्द इस बात की पुष्टि कर देता है कि गुरू नानक ने सिक्ख पँथ की स्थापना ही "शबद गुरू" के सिधाँत के आधार पर की थी ।क्योकिे उस समय तक करोड़ों देवी देवताओ और मूर्ति पूजा में मनुष्य का अध्यात्मिक जीवन उलझ के रह गया था। इस ब्रहमाँड के इकलौते मालिक और सिर्जनहार "एक करतार " के ग्यान से मनुष्य कोसो दूर हो चुका था । लोग पत्थरो और पशुओ को ही अपना आराध्य मानने लगे थे ।
आज दुनियाँ में कयी प्रकार के धर्म और अध्यातमिक पद्धतियाँ मोजूद हैं ।उनकी पूजा विधियाँ और मान्यतायें भी अनेकों हैं , लेकिन "शब्द" को गुरू मानने की प्रथा और उस शब्द से इस दुनियाँ के रचनाकार "ੴ" तक पँहुचने की पद्धति और किसी धर्म में नही, इसी लिये भाई गुरदास जी ने सिक्ख पँथ की उपमा "निरमल और नियारे पँथ " के रूप में की ।
देहधारी गुरू डम हमेशां मनुष्य को शब्द ग्यान से दूर रखते आये हैं । पत्थर की मूर्तियाँ कभी भी ग्यान नहीं दे सकतीं ।कारण स्पष्ट है कि यह पत्थर शबद पैदा नही कर सकते, और शब्द के बिनां ग्यान की उत्पति नहीं हो सकती । उदाहरण के तौर पर यदि कोई गूँगी और बहरी टीचर वर्षों तक क्लास मे रोज आती रहे, सारी उम्र क्लास में आती रहे, वह बच्चों में कोई ग्यान पैदा नही कर सकती । दूसरा उदाहरण: लम्बे सफर के दौरान हमें गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिये और उस स्थान की दूरी कक जानकारी देने के लिये मील के पत्थर यां साँकेतिक बोर्ड लगे होते हैं । यदि हर मील के पत्थर यां साँकेतिक बोर्ड पर लिखे हर "शब्द" को मिटा दिया जाय, तो यात्रा करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से भटक जायेगा । क्योकि मील के पत्थर पर लिखे शब्द ही यात्री को अपनी यात्रा के स्थान और दिशा का ग्यान देते हैं, बिना शब्द लिखे हजारो पत्थर अगर उस पथ पर गाड़ दिये जाये तो उसका कोई लाभ उस पथ पर जा रहे पथिक को प्राप्त नहीं हो सकता ,क्योंकि ग्यान तो शब्द से ही उपजता है पत्थर से नहीं ।
इन दोनो उदाहरणों से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि ग्यान का माध्यम "शब्द" है और ग्यान देने वाला ही "गुरू" भी कहलाता है । इसी लिये केवल सिक्ख पँथ ही एक एैसा निराला पँथ है जहाँ " शब्द" को ही " गुरू" की मान्यता दी गयी है किसी व्यक्ति या देहधारी को "गुरू " कहना वर्जित है ।
गुरू ग्रँथ साहिब जी, जो सिक्खों के केवल एक "शब्द गुरू" हैं , उनकी वाणी बार बार "शब्द " के महत्व को दोहराती और अपने सिक्ख को इस बात के लिये दृड़ कराती है कि इन मूर्तीयों और किसी व्यक्ति को पूजने से तुम्हे, कोई ग्यान हासिल होने वाला नहीं है । गुरू वाणी का हुकम है कि बिना शब्द के सारा जगत बौराया हुआ अपना जीवन व्यर्थ में गवा रहा हैं ।सतिगुरू का शब्द ही वह अँमृत है, जो केवल गुरमुख (गुरू को मानने वाले ) को ही प्राप्त हो सकता है ।
बिनु सबदै सभु जगु बउराना बिरथा जनमु गवाइआ ।।
अँमृतु एको सबदु है नानक गुरमुखि पाइआ ।। अँक ६४४
इन्दरजीत सिँध, कानपुर
ਇੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕਾਨਪੁਰ
सिक्ख पँथ में "शब्द गुरू" का सिद्धाँत
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