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ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੋਚ ਬਦਲਣ ਦੀ ਲੋੜ, ਉਹ ਵੀ ਬਹੁਤ ਛੇਤੀ
ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੋਚ ਬਦਲਣ ਦੀ ਲੋੜ, ਉਹ ਵੀ ਬਹੁਤ ਛੇਤੀ
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ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੋਚ ਬਦਲਣ ਦੀ ਲੋੜ, ਉਹ ਵੀ ਬਹੁਤ ਛੇਤੀ 
गुरजिएफ कहा करता था कि मैंने सुना है एक जादूगर के संबंध में कि उसने बहुत सी भेड़ें पाल रखी थीं। और रोज एक भेड़ को वह काटता और अपना भोजन तैयार करवाता। 
सैकड़ों भेड़ें यह देखती रहती, लेकिन फिर भी भेड़ों को याद न आती यह बात कि आज नहीं कल हम भी काटे जाने को हैं।
उस जादूगर के पास एक मेहमान ठहरा हुआ था, उस मेहमान ने कहा कि ये भेड़ें बड़ी अदभुत मालूम होती हैं। इनके सामने ही तुम रोज भेड़ों को काटते रहते हो, फिर भी ये भेड़ें मस्त घूमती रहती हैं; इन्हें खयाल नहीं आता क्या कि हम भी कल काटे जाने को है? किसी भी दिन यह छुरी हमारी गर्दन पर भी पड़ेगी?
उस जादूगर ने कहा कि मैंने इन भेड़ों को बेहोश करके सभी को एक सुझाव दे रखा है, और वह यह : प्रत्येक के कान में मैंने उसकी बेहोशी में कह दिया है कि तुम भेड़ नहीं हो, बाकी सब भेड़ हैं--तुम भेड़ नहीं हो, बाकी सब भेड़ें हैं, सब कटेगी, तुम नहीं कटोगी। इसलिए ये निश्चित हैं; और ये किसी को कटते देख कर भागती नहीं हैं।
उस मेहमान ने पूछा : और भी हैरानी की बात है कि तुम इन्हें कभी बांधते नहीं। ये कभी भटक नहीं जातीं, खो नहीं जातीं?
उसने कहा... मैंने इन्हें यह भी कह रखा है कि तुम परम स्वतंत्र हो, तुम बंधी हुई नहीं हो; क्योंकि बंधन से तो कोई भागता है, जब कोई स्वतंत्र ही हो तो भागने का कोई सवाल ही नहीं। बंधन हो तो भागने का खयाल भी पैदा होता है।
गुरजिएफ कहा करता था कि आदमी करीब-करीब ऐसी ही स्थिति में है; वह अपने कारागृह को अपना महल मानता है। तो उससे छूटने का सवाल ही नहीं है, बल्कि कोई छुड़ाने आ जाए तो वह सुरक्षा का इंतजाम करेगा कि तुम हमारे दुश्मन हो, महल से छुड़ाना चाहते हो! 
आदमी अपनी जंजीरों को आभूषण मानता है; वह उसका श्रंगार हैं। अगर उसके आभूषण छीनने जाओगे तो वह तलवार निकाल कर खड़ा ही हो जाएगा।
इसलिए गुरजिएफ कहता था, पहली बात जान लेना  जरूरी है--
अगर किसी कैदी को मुक्त होना हो, तो ये जानना जरूरी है कि वह कैदी है;
किसी गुलाम को मुक्त होना हो, तो उसे ये ज्ञान जरूरी है कि वह गुलाम है।
यह उसकी चेतना में इतनी गहराई से घुस जाना चाहिए कि उसके प्राण पीड़ित हो उठें और मुक्त होने की आकांक्षा से भर जाएं।

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